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DETAIL STORY
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संपादकीय
बाधाओं के पार
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अल्बर्ट आइंस्टाइन की सीखने की क्षमता कम थी। फिर भी उन्होंने सापेक्षता का सिद्धांत विकसित कर दिया, जिसने आज दुनिया को देखने और समझने के लोगों के तरीके पर बहुत प्रभाव डाला। थॉमस अल्वा एडिसन ऊंचा सुनते थे, लेकिन जिस आधुनिक दुनिया में हम रह रहे हैं, उसके निर्माण में उनके आविष्कार बिजली जितना योगदान किसी ने नहीं किया।
लुई ब्रेल देख नहीं सकते थे किंतु उनके ही नाम से प्रसिद्ध उनकी रचना ब्रेल ने दुनिया भर के नेत्रहीन लोगों को पढ़ने और लिखने की क्षमता दी। इन लोगों ने सिद्ध किया कि किसी की अक्षमता नहीं बल्कि क्षमता महत्वपूर्ण हेाती है।
एक समय था, जब शारीरिक अथवा मानसिक विकलांगता को विकलांग व्यक्ति के परिवार तथा स्वयं उस व्यक्ति के लिए अभिशाप माना जाता था। इसे पिछले जन्म में किए गए पापों के बदले भगवान से मिला दंड माना जाता था। शुक्र है कि आधुनिक विज्ञान ने ऐसी गलतफहमी दूर करने में मदद की है। विकलांगता को अब ऐसी चिकित्सकीय समस्या माना जा रहा है, जिसका इलाज हो सकता है। विकलांगों के साथ अब समाज से बहिष्कृतों की तरह व्यवहार नहीं किया जाता है। विज्ञान एवं नए आविष्कारों ने उनकी विकलांगता के कारण आई कमी दूर करने के उपकरण दिए हैं। ब्रेल, जयपुर फुट कुछ उदाहरण हैं, जिन्होंने शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के जीवन को बेहतर बनाया है। मानसिक विकलांगता वालों को भी समाज में उनकी आवश्यकताओं के संबंध में अधिक स्वीकार्यता एवं प्रतिक्रिया होने से लाभ हुआ है।
उनकी शिक्षा संबंधी विशेष आवश्यकताओं के संबंध में भी पहले से अधिक जागरूकता उत्पन्न हुई है। वास्तव में अब यह माना जाने लगा है कि विकलांगों को विशेष विद्यालयों में नहीं जाना चाहिए बल्कि समावेशी वातावरण तैयार करने के लिए उन्हें नियमित विद्यालयों में भेजा जाना चाहिए। सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकीकरण अब भी समस्या है। किंतु यह भी जल्दी ही बदल जाएगी और विकलांगों को हमारे समाज एवं राष्ट्र के अभिन्न एवं महत्वपूर्ण घटक के रूप में देखा जाएगा।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने विकलांगों को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय सहभाग करने योग्य सशक्त बना दिया है। विकलांगों को बाधा रहित वातावरण उपलब्ध कराने एवं स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने योग्य बनाने के लिए प्रयास तेज हुए हैं। सुगम्य भारत अभियान ऐसा समावेशी समाज बनाने की सरकार की दृष्टि का ही परिणाम है, जिस समाज में विकलांगों को उत्पादकतापूर्ण, सुरक्षित एवं गरिमामय जीवन व्यतीत करने हेतु समान अवसर एवं सुविधा उपलब्ध कराई जाएं।
नियोक्ताओं द्वारा नियुक्त किए जाने वाले विकलांग व्यक्तियों का प्रतिशत भी हाल में बढ़ा है। इस प्रकार ऐसी आबादी का वित्तीय समावेशन बढ़ रहा है। कौशल के बेहतर अवसरों से अधिक योग्य एवं सक्षम श्रम शक्ति तैयार हुई है, जिससे विकलांगों की क्षमताओं में नियोक्ताओं का विश्वास बढ़ा है। सरकार ने भी उनकी आजीविका में सहायता करने हेतु उनके नए, अनूठे विचारों हेतु छात्रवृत्तियां तथा वित्तीय सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था भी की है। विकलांग व्यक्ति अब जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं - चाहे वह सरकारी सेवा हो, मनोरंजन उद्योग हो या खेल हों।
व्यक्ति किसी भी स्थान पर हो, किसी भी उम्र का हो, स्त्री हो या पुरुष हो अथवा विकलांग हो, प्रत्येक जीवन की एक योजना है, एक उद्देश्य है, एक मूल्य है। यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि विकलांग व्यक्ति सर्वाधिक प्रेरणास्पद व्यक्ति होते हैं। उन्हें समान अवसर दीजिए और अपनी अलग क्षमताओं के साथ वे "सामान्य" व्यक्तियों से अधिक शक्तिशाली तथा क्षमतावान सिद्ध होंगे। और यदि हम सभी इसे स्वीकार कर लेते हैं तो हमें समाज में परिवर्तन दिख सकता है।
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झरोखा जम्मू कश्मीर का : कश्मीर में रोमांचकारी
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