अंक: October 2015
 
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भारत निर्माता के प्रति
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अग्र लेख

परिवहन क्षेत्रः आर्थिक पक्ष

जगन्नाथ कश्यप 


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संपादकीय
 
परिवर्तन के लिए शिक्षा

    यह प्रसिद्ध उक्ति बताती है कि शिक्षा का कितना अधिक महत्व है। हमारे देश के संदर्भ में यह बात और भी सच है। एक युवा लोकतंत्र के तौर पर भारत शिक्षा के मोर्चे पर बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है। राष्ट्र की बुनियाद रखने वालों ने शैक्षिक विकास को पर्याप्त महत्व प्रदान कर जो दूरदर्शिता दिखाई थी, उसका भरपूर लाभ हमें मिला है। शिक्षा का भारत में ऐतिहासिक रूप से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन भारत में पुरोहित वर्ग ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्ययन करता था, जबकि क्षत्रिय एवं वैश्य विशिष्ट उद्देश्यों के लिए जैसे विमान, युद्धकला अथवा व्यापार सीखने के लिए अध्ययन करते थे। प्राचीन शिक्षा प्रणालियों का उद्देश्य जीविकोपार्जन था। विदेशों से उच्च शिक्षा हेतु आने वाले छात्रों के लिए भी भारत शीर्ष स्थल था। सबसे बड़े शिक्षा केंद्रों में से एक नालंदा में ज्ञान की सभी शाखाएं थीं और अपने चरमोत्कर्ष काल में उसमें 10,000 तक छात्र रहते थे।

स्वतंत्रता के बाद नीति निर्माताओं ने अंग्रेजों द्वारा निर्मित कुलीनतावादी शिक्षा प्रणाली को जन सामान्य की उस शिक्षा प्रणाली में बदलने के लिए कठिन परिश्रम किया, जो समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर खड़ी थी। वर्ष 2009 में शिक्षा के अधिकार का विचार देते हुए इसे मौलिक अधिकार बना दिया गया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा भी की गई। उसके बाद से नीति निर्माताओं ने सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सभी को शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। आज भारत को तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था के रूप में ही नहीं बल्कि उपयुक्त एवं शिक्षित व्यक्तियों वाले शक्तिशाली मानव संसाधन के विशाल समूह के रूप में भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उच्च शिक्षित, तकनीक को समझने वाले और वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षित भारतीय नागरिक दुनिया के कोने-कोने में विभिन्न प्रकार के काम कर रहे हैं और भारत का मान बढ़ा रहे हैं। साक्षरता के स्तर में वृद्धि पिछले कुछ वर्षों में स्मरणीय उपलब्धियों में शामिल रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता दर केवल 12 फीसदी थी। 2011 की जनगणना के अनुसार आज हमारी साक्षरता दर 74.4 फीसदी है। 93.1 फीसदी के साथ केरल और 91.58 फीसदी के साथ मिजोरम सबसे आगे हैं और दूसरे राज्यों को भी ऊंचाई तक पहुंचने के लिए प्रेरित करते हैं।

इस यात्रा में चुनौतियां भी रही हैं और कमियां भी रही हैं। शिक्षा प्राप्त करना कई लोगों के लिए अभी तक सपना ही बना हुआ है, विशेषकर सुदूर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए, जहां स्कूल की इमारत नहीं होतीं अथवा बारिश या बर्फवारी होने पर स्कूल पहुंचने की संभावना भी नहीं होती। आदिवासियों, हाशिये पर धकेले गए लोगों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति को शिक्षा की उचित सुविधा उपलब्ध कराना उन्हें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास कर रहे नीति निर्माताओं के लिए चिंता का बड़ा विषय है। दुर्गम स्थानों पर स्कूल होने के कारण तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए शौचालयों की कमी के कारण सुरक्षा संबंधी चिंता पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप स्कूल छोडने वालों की दर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। शिक्षा संबंधी योजना बनाते समय उन बच्चों को एकदम भुलाया जाता रहा है, जिन्हें विशेष देखभाल की जरूरत है या जिनकी विशेष आवश्यकताएं हैं। अब इन मामलों को स्वीकार किया जा रहा है और सरकार समाज के इन वर्गों को प्राथमिकता देते हुए उनकी समावेशी वृद्धि के लिए विभिन्न योजनाओं पर काम कर रही है। ज्ञान, स्वयं तथा नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा तक बेहतर पहुंच उपलब्ध कराने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो रहा है। अंतर्निहित निगरानी एवं प्रभावी मूल्यांकन प्रणालियों की तथा हाईस्कूल एवं कालेज के स्तरों पर व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता अनुभव की गई है।

शिक्षा में तेजी ने तथा बेहतर करने की इच्छा ने एक चिंताजनक स्थिति भी उत्पन्न कर दी है, जहां विद्यार्थियों पर उपलब्धियों एवं प्रदर्शन का बड़ा दबाव हो गया है। बच्चे को मशीनी शिक्षा प्रणाली के उत्पाद के रूप में देखे जाने के कारण व्यक्तिगत विकास एवं जीवनोपयोगी कौशल विकास के महत्व को अनदेखा किया गया है। जो व्यक्ति तैयार किए जा रहे हैं, वे स्वयं विचार करने अथवा जिम्मेदारी लेने एवं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में असमर्थ हैं। शिक्षा प्रणाली द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में जीवनोपयोगी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम का समावेश करते हुए बच्चे को समाज की चुनौतियों के साथ प्रभावी तरीके से निपटने योग्य बनाया जाना चाहिए। सीबीएसई ने 2012 में जीवनोपयोगी कौशल कार्यक्रम को सतत एवं समग्र मूल्यांकन के अंश के रूप में शामिल किया था, जिसका लक्ष्य 10 से 18 वर्ष के बीच की आयु वाले किशोर विद्यार्थी थे। सर्व शिक्षा अभियान की कार्य सूची में भी गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा प्रदान कराने के साथ ही उच्च प्राथमिक कक्षाओं की लड़कियों को जीवनोपयोगी कौशलों का प्रशिक्षण देना भी शामिल है। देश के नागरिक के रूप में बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए मूल्य आधारित शिक्षा भी आवश्यक हो गई है, जिसे स्कूल एवं काॅलेज के स्तर पर मूल्य सिखाकर, उनका पोषण एवं विकास कर प्राप्त किया जा सकता है।

    मीलों लंबी यात्रा पहले ही की जा चुकी है और सरकार का ध्यान लगातार बना रहा तो देश ऐसे व्यक्तियों के निर्माण में सफल होगा, जो स्वयं में विश्वास करें तथा शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को पूरा करें अर्थात राष्ट्र का निर्माण करें एवं हमारी भावी पीढियों को गढ़ें।

 
 
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