अंक: December 2015
 
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भारत निर्माता के प्रति
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परिवहन क्षेत्रः आर्थिक पक्ष

जगन्नाथ कश्यप 


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मुख्य लेख
 
भारत में स्कूली शिक्षा का कायाकल्पः नीतिगत मुद्दे तथा प्राथमिकताएं

    

नई शिक्षा नीति को साथ अध्ययन करना और साथ रहना सिखाने वाले मूल्यों एवं आचरण वाली दुनिया की कल्पना करनी होगी। यदि ऐसी नीति केवल बातों के लिए नहीं होनी है बल्कि उसे स्थायी होना है तो उसे सांस्कृतिक, भाषाई और आर्थिक संदर्भ में व्यापक विविधता वाले इस देश में रहने वाले लोगों के साझे मूल्यों एवं अनुभवों पर आधारित होना चाहिए। वास्तव में पूरे देश में शिक्षा में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है, जो भविष्य के आशा का भाव जगाती है। आशा एवं आकांक्षा के इसी भाव को भविष्य की नीति का आधार बनाना होगा.

उपनिवेशिक अतीत से विरासत में मिली कुलीनतावादी शिक्षा व्यवस्था को जनसमान्यवादी एवं समानता तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित शिक्षा व्यवस्था में बदलने का कार्य आरंभ किए भारत को छह दशक से अधिक बीत चुके हैं। यह कार्य आसान नहीं रहा है। देश को लगातार बढ़ती जनसंख्या का सामना भी करना पड़ा, जिसके कारण बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाने और सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में हुई प्रगति धीमी लगने लगी। छह दशक से भी अधिक समय से जारी यह प्रयास कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपायों का साक्षी बना है, जिनके कारण शानदार प्रगति हुई है और स्कूलों में लगभग सभी बच्चों के प्रवेश से यह बात सिद्ध होती है। भारतीय संसद द्वारा 2009 में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया जाना और शिक्षा का अधिकार अधिनियम को पारित किया जाना इस यात्रा में सबसे निर्णायक क्षण रहे। देश सभी को माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराने एवं सभी को उच्च शिक्षा समान रूप से उपलब्ध कराने के महत्वाकांक्षी मार्ग पर भी चल पड़ा है। इन उपलब्धियों और नीतिगत उपायों के कारण भविष्य के लिए नई अपेक्षाएं खड़ी हो गई हैं।

प्राथमिक शिक्षा में लगभग सभी बच्चों का प्रवेश कराने तथा सभी स्तरों पर शिक्षा की उपलब्धता में व्यापक विस्तार करने के बाद देश गुणवत्ता के मोर्चे पर बड़े कदम उठाने एवं यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार खड़ा है कि बच्चे केवल स्कूल नहीं जाएं बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करें। किंतु इसके लिए विभिन्न नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो हमारा ध्यान एवं संसाधनों का निवेश कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित करें। इसके अतिरिक्त समानता के मुद्दे को खतरे में डाले बगैर गुणवत्ता में सुधार सुनिश्चित करना होगा। इस संक्षिप्त आलेख में मैं स्कूली शिक्षा में ऐसे कुछ कदमों पर प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा, जो सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में और प्रगति करने के लिए बहुत आवश्यक हैं।

 
 
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