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संपूर्ण स्वछता की राह में बाधाएँ : ज़िला स्तरीए सर्वेछ्ण के अनुभव
ग्रेगरी पियर्स |
दुनिया में 2.6 अरब लोगों केपास शौचालय की सुविधा नहीं हैं और उनमें सेलगभग 65 करोड़ लोग भारत में रहतेहैं। स्वच्छता की इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए भारत सरकार ने ‘महात्मा गांधी स्वच्छ भारत कार्यक्रम’ की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम की सफलता तथा विशेष तौर पर इसका टिका रहना संभवत: सामाजिक संरचनात्मक शक्तियों केसाथ जुड़नेपर निर्भर करता है,जो निन्म स्वच्छता स्थिति को संचालित करती है। इस अध्ययन का उद्देश्य भारत में स्वच्छता केसामाजिक संरचनात्मक संदर्भ की खोज करना है। हम स्वच्छता केएक बहुभिन्नरूपी मॉडल का प्रस्ताव देतेहैं तथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण– III से लिए गए आंकड़ों केसाथ इसके अनुभवजन्य वैधता का मूल्यांकन करते हैं। हम पाते हैं कि स्वच्छता की स्थिति की बेहतरी में आधुनिकीकरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कार्यक्रम सफल हो सके,इसकेलिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है,जो आधुनिक सुख सुविधाएंतथा जनस्वास्थ्य शिक्षा को लोगों के दरवाज़े तक लेजाए।
शौचालयों का अपर्याप्त उपयोग भारत में बीमारियों तथा मृत्यु की उच्च दर को सीधे तौर पर बढ़ावा देता है। भारत में विष्व की जनसंख्या का लगभग एक-चैथाई हिस्सा अपर्याप्त शौचालयों के साथ गुजारा कर रहा है। साथ ही, भारत में छह करोड़ लोगों को खुले में षौच जाना पड़ता है (यूनिसेफ 2012). शौचालयों की अपर्याप्तता या उनके इस्तेमाल न होने से भारत का सकल घरेलू उत्पाद कम से कम 6.4 फीसदी सालाना घट जाता है (डब्ल्यूएसपी 2011, चैम्बर्स व वाॅन मेडिएजा 2013).
यह आलेख जिला स्तर पर स्वच्छता उपयोग में विविधता को दर्शाने के लिए स्थानिक विश्लेषण तकनीक का इस्तेमाल करता है। स्थानिक स्वतः सहसंबंध का यह परीक्षण निर्धारित करता है कि स्वच्छता उपयोग जिला स्तर पर बुरी तरह सीमित है। स्थानिक स्वतः सहसंबंध का परीक्षण यह भी बताता है कि जिलों में निम्न स्वच्छता का ऐसा क्लस्टर है जहां पांच वर्ष से कम आयु वर्ग की मृत्यु दर अधिक है। वहीं, स्थानिक अंतराल माॅडल भी शौचालयों के उपयोग के सामाजिक-आर्थिक मानक तथा परस्पर संस्थानिक संबंधों के पता लगने के बाद भी स्थानिक बाधाओं के बावजूद कार्यरत है। जिला स्तर पर इन कलस्टरों तथा विवरणात्मक बल की स्थिति उन प्रक्रियाओं को दर्शाती हैं।
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