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भारतीय विनिर्माण में संपोषणीयता व नवाचार की आवश्यकता
- बालकृष्ण सी राव |
विनिर्माण के पारंपरिक क्षेत्रों में शोध के अलावा संपोषणीयता के हिसाब से देखें तो भारतीय अकादमिक जगत और उद्योग कुछ नवीन परिवर्तनशील तकनीक पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। 3-डी प्रिंटिग या योगज विनिर्माण तकनीक का आगमन एक ऐसी तकनीक है कि इसने हाल के दशक में कल-पुर्जों के विनिर्माण के कुछ ऐसे क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है जो मुख्यतः अधातु पदार्थों से बने हैं।
दुनिया की कई स्वतंत्र संस्थाओं जैसे इंटरनेशनल इनर्जी एजेंसी (आईएईए), मिलेनियम इकोसिस्टम मैंनेजमेंट और जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति द्वारा जलवायु परिवर्तन को वैज्ञानिक रूप से मानवता के लिए गंभीर खतरा माना गया है। ऐसा विभिन्न मानवीय गतिविधियों द्वारा दुनिया भर में कई वर्षों से ग्रीन हाउस गैस के सतत उत्सर्जन की वजह से हुआ है। वास्तव में देखा जाए तो संसाधनों की कमी और अन्य संबंधित नकारात्मक प्रभाव, यहां का जनसंख्या घनत्व, विशाल समुद्री तट और आम जनता की भलाई के लिए प्रसांगिक अन्य कारकों की वजह से भारत के लिए यह जलवायु परिवर्तन बहुत ही ज्यादा होगा।
ऐसी ही एक मानवीय गतिविधि विनिर्माण क्षेत्र है जो औद्यौगिक क्रांति के समय से ही उद्योग-प्रधान देशों का मुख्य आधार रहा है और हाल में उभरते हुए बाशार चीन और भारत का भी। वैश्वीकरण की गति के आगे बढ़ने के साथ-साथ ही दुनिया की बहुत सारी विनिर्माण गतिविधियां इन्हीं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से संचालित की जा रही है और विकसित दुनिया की प्रमुख कंपनियों के विदेशी शाखाओं के तौर पर काम करती हैं। विनिर्माण गतिविधियों की इस आउटसोर्सिंग ने चीन और भारत जैसे उभरते हुए बाशारों के विशाल विनिर्माण ढांचे को भी समुन्नत किया है।
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