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पूर्वोत्तर में परिवहनः दशा और दिशा
गौरव कुमार
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इस क्षेत्र के विकास की अनिवार्यता अब व्यापक पैमाने पर महसूस की जाने लगी है। खास कर पूर्वोत्तर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के संदर्भ में यहां पर परिवहन व्यवस्था के विकास की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। पूर्वोत्तर क्षेत्र को शेष भारत से जोड़ना और इस क्षेत्र में संपर्क विकसित करना निश्चित रूप से एक दुरुह कार्य है। तथापि इस दिशा में हमने उल्लेखनीय प्रगति की हैं। भविष्य में उन सभी संबंधित मुद्दों की पहचान करते हुए इस दिशा में प्रगति की उम्मीद की जा रही है.
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र आठ राज्यों का एक समूह है। इसकी भौगोलिक अवस्थिति, भाषाई विविधता, सांस्कृतिक पहलू और प्राकृतिक सुंदरता सदा से आकर्षण का केंद्र रहा है। सरल ग्रामीण सामजिक संरचना और वर्ग विहीन जनजातीय समाज एक आदर्श उपस्थित करता है। आर्थिक क्रिया-कलापों की आपाधापी से दूर सरल, शांत आर्थिक व्यवस्था और सबसे बढ़कर हस्त शिल्प की उन्मुक्त संस्कृति इस क्षेत्र की विशेषता रही है। पूर्वोत्तर क्षेत्रा हमेशा भारत की विविधता में एकता की संस्कृति को रेखांकित करता है। परंतु कुछ खामियों की वजह से इस क्षेत्र का विकास अपेक्षानुरूप नहीं रहा है। इन वजहों से राष्ट्र विरोधी तत्वों की पहुंच इन क्षेत्रों में बढ़ती जा रही है। अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, असम और सिक्किम इन आठ राज्यों को मिलाकर बना पूर्वोत्तर क्षेत्र 2 लाख 62 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रा में विस्तृत है। एक लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा और एक संकरी पट्टी जिसे आमतौर पर सिलीगुड़ी गलियारा या चिकेन नेक के नाम से जाना जाता है के द्वारा भारत से जुड़ा है। यह न केवल आर्थिक विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण क्षेत्र है वरन इसका अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से सामरिक व रणनीतिक महत्व भी है।
इसके व्यापक महत्व को देखते हुए ही भारत सरकार इस क्षेत्र के विकास पर काफी ध्यान देती है। इस क्षेत्र के समुचित विकास के लिए कई संगठनों, संस्थाओं, परिषदें, एजेंसी, समिति आदि की स्थापना की गई है। भारत सरकार ने इस क्षेत्रा में विकास को और अधिक गति देने के लिए 2001 में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय का गठन किया है। परंतु इन सबके बावजूद कई तरह की भौगोलिक कठिनाइयों की वजह से इस क्षेत्र का समुचित विकास एक कठिन कार्य रहा है। इस क्षेत्र के विकास की अनिवार्यता अब व्यापक पैमाने पर महसूस की जाने लगी है। खास कर पूर्वोत्तर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के संदर्भ में यहां पर परिवहन व्यवस्था के विकास की आवश्यकता महत्वपूर्ण है।
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