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भारत मेंस्वच्छता और सामाजिक परिवर्तन विजयन के पिल्लै, रूपल पारेख |
दुनिया में 2.6 अरब लोगों केपास शौचालय की सुविधा नहीं हैं और उनमें सेलगभग 65 करोड़ लोग भारत में रहतेहैं। स्वच्छता की इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए भारत सरकार ने ‘महात्मा गांधी स्वच्छ भारत कार्यक्रम’ की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम की सफलता तथा विशेष तौर पर इसका टिका रहना संभवत: सामाजिक संरचनात्मक शक्तियों केसाथ जुड़नेपर निर्भर करता है,जो निन्म स्वच्छता स्थिति को संचालित करती है। इस अध्ययन का उद्देश्य भारत में स्वच्छता केसामाजिक संरचनात्मक संदर्भ की खोज करना है। हम स्वच्छता केएक बहुभिन्नरूपी मॉडल का प्रस्ताव देतेहैं तथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण– III से लिए गए आंकड़ों केसाथ इसके अनुभवजन्य वैधता का मूल्यांकन करते हैं। हम पाते हैं कि स्वच्छता की स्थिति की बेहतरी में आधुनिकीकरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कार्यक्रम सफल हो सके,इसकेलिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है,जो आधुनिक सुख सुविधाएंतथा जनस्वास्थ्य शिक्षा को लोगों के दरवाज़े तक लेजाए।
संभव है कि 2050 तक विश्व की जनसंख्या संभवत: 9.6 खरब तक पहुंच जाए और इस जनसंख्या का लगभग 66 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में रह रहे हों (पोर्टर,डायबॉल,डमार्स्क,डॉच एवं मत्सुदा, 2014; इवान्स, 1998)। इसका मतलब है कि 2050 तक इस जनसंख्या में 2.4 खरब लोग और जुड़ जायेंगे और शहरी जनसंख्या में 12 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो जाएगा। भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि बेहद उच्च है,हालांकि जहां हाल के दशकों में कुल प्रजनन दर में गिरावट आयी है,लेकिन जनसंख्या गति के कारण जनसंख्या आकार लगातार तेज़ी सेबढ़ता रहा है (चंद्रशेखर, 2013)।यद्यपि विकसित देशों के मुक़ाबले विकासशील देशों में शहरी जनसंख्या का अनुपात कम है, विश्व की शहरी जनसंख्या की लगभग 53 प्रतिशत जनसंख्या एशियाई विकासशील देशोंमें रहती है। संभवत: इस तेज़ी सेबढ़ती जनसंख्या का सबसेअनअपेक्षित परिणाम ध्वस्त स्वच्छता स्थिति है, जिसकेकारण यहां निम्न स्वास्थ्य स्थिति है (रेनर एवंलंग 2013)।
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