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      अंक: October 2014
 
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भारत निर्माता के प्रति
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परिवहन क्षेत्रः आर्थिक पक्ष

जगन्नाथ कश्यप 


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Articles
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  योग साधकों का मूल्यांकन एवं प्रमाणन
रवि पी सिंह&bsp; मनीष पांडे
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ईश्वर एन आचार&bsp; राजीव रस्तोगी
  आज की व्यस्त जीवनशैली में अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख पाना एक जटिल कार्य हो गया है लेकिन
योग साधकों का मूल्यांकन एवं प्रमाणन
रवि पी सिंह   मनीष पांडे

योग संस्थानों के प्रमाणन की योजना उन मूलभूत नियमों में सामंजस्य बिठाने की दिशा में उठाया कदम है, जिन नियमों पर योग प्रशिक्षण आधारित होना चाहिए एवं इसका उद्देश्य योग शिक्षकों को प्रशिक्षित करने वाले संस्थानों पर विचार किए बगैर उनके लिए परिणाम के मानदंड तैयार करना भी है। मानव शरीर एवं मस्तिष्क के स्तर पर कार्य करने वाले ऐसे अभ्यास आधारित महत्वपूर्ण विज्ञान हेतु यह आवश्यक है कि आरंभ में ही नियम बना दिए जाएं और उन्हें बाज़ार की शक्ति के भरोसे नहीं छोड़ा जाए, जो भारतीय ग्रंथों में समाहित इस विज्ञान की मूल प्रकृति को दूषित कर सकती हैं।

भारतीय ग्रंथों में योग को प्राचीन विज्ञान कहा गया है, जिसे ऋषियों ने विकसित किया था और शताब्दियों से जिसका अभ्यास किया जा रहा है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों के संदर्भ देकर कई वर्षों से योग पर साहित्य तैयार किया गया है। यह पूरे विश्व में फैला हुआ है और इसकी लोकप्रियता तथा मानव मस्तिष्क एवं शरीर पर इसके प्रभाव को पूरे विश्व में स्वीकार किया जाता है। किंतु, अधिकतर लोगों को यह नहीं पता कि योग का विकास जीवन को परिवर्तित करने वाले अनुभव के रूप में हुआ है, जिसमें मानव सभ्यता को बेहतर बनाने की संभावना है।

योग शब्द संस्कृत के शब्द 'युज' से आया है, जिसका अर्थ है 'मिलना' अथवा 'एकाकार होना'। योग को भारतीय समाज एवं संस्कृति में व्याप्त आध्यात्मिक एवं सिद्ध पद्धति माना जाता है। योग के कुछ रूपों (जैसे श्वास पर नियंत्रण, सामान्य ध्यान एवं विशिष्ट शारीरिक मुद्राएं धारण करना अर्थात् आसन) का स्वास्थ्य संबंधी हानियों को दूर करने एवं मानसिक शांति के लिए दुनिया भर में अभ्यास किया जाता है। प्रसिद्ध ऋषि पतंजलि ने योग को परिभाषित करते हुए कहा था ''योगः चित्त वृत्ति निरोधः'', जिसका अर्थ है ''मस्तिष्क में परिवर्तन को रोकना ही योग है।'' चित्त का अर्थ है मस्तिष्क, वृत्ति का अर्थ है विचारों में संवेग और निरोधः का अर्थ है रोकना।

 
 
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